Monday, May 9, 2016

अवैध अतिक्रमण पर मुख्यमंत्री मौन

  
उच्चतम न्यायालय के स्पष्ट आदेश हैं कि तालाबों, कुओं पर किसी भी व्यक्ति का अतिक्रमण हो, उसे तत्काल प्रभाव से हटा दिया जाये। चाहे यह अतिक्रमण कितना भी पुराना क्यों न हो। इसी को ध्यान में रखते हुए  शासन और प्रशासन की अनदेखी के चलते जलस्रोतों को बर्बाद होते देख वर्ष 2001 में एक पीआईएल 4787/2001 उच्चतम न्यायालय में दाखिल की गई। दाखिल पीआईएल की गम्भीरता को देखते हुए 25 जुलाई 2001 को सैयद शाह कादरी एवं एसएन फूकन न्यायाधीशों ने संयुक्त रूप से आदेश दिया कि तालाबों, पोखरों, बावडि़यों तथा कुओं का न तो स्वरूप बदला जा सकता है और न ही किसी तरह का अतिक्रमण किया जा सकता है। तालाबों, पोखरों, बावडि़यों तथा कुओं पर जो भी अतिक्रमण हो उसे तत्काल प्रभाव से हटा दिया जाये।


सनद रहे कि प्रदेश के शहरी एवं ग्रॉमीण क्षेत्रों में अनेकों स्थानों पर भूजल की उपलब्धता में कमीं आने के साथ ही भूजल स्तर में तेजी से गिरावट आई और भूगर्भशास्त्रियों ने आशंका जाहिर की कि यदि यही हालात रहे तो आगामी वर्षों में पानी का भयंकर संकट देश के समक्ष खड़ा हो जाएगा तब इसी को ध्यान रखते हुए 18 फरवरी 2013 को प्रदेश में उत्तर प्रदेश भूजल प्रबन्धन, वर्षाजल संचयन एवं भूजल रिचार्ज हेतु समग्र नीतिलागू की गई। इस समग्र नीति को क्रियान्वयन को कई विभागों को सौंपा गया।

इतना ही नहीं भूजल की स्थिति को देखते हुए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्राकृतिक जलस्रोतों तालाबों, पोखरों तथा कुओं को संरक्षित करने के लिये 1 अप्रैल 2015 को मुख्यमंत्री जल बचाओ अभियान योजनाको लागू किया है। जिसे कड़ाई से पालन करनें पर पूरी तरह जोर दिया है। लेकिन शासन-प्रशासन ने उच्चतम न्यायालय के आदेशों को दरकिनार करते हुए जलस्रोतों पर कोई भी ध्यान नहीं दिया।

क्या है यहाँ के अतिक्रमण का मामला

भूमाफियाओं द्वारा भूजल से संबंधित अतिक्रमण का मामला ग्रॉम/पोस्ट-परियत, क्षेत्र-बरसठी, तहसील-मडि़याहूँ, जिला-जौनपुर, उत्तर प्रदेश का एक नया मामला संज्ञान में आया है। यहाँ के सरकारी अधिकारियों के सरपरस्ती में एक कुँआ जिसे ग्रॉमवासी कोतवाली का ईनारा कहते हैं जो पखण्डी सोनार व मल्लर तिवारी के घर के पास में है, का तीन ओर से जमीन के लालच में एक दबंग महिला विजय लक्ष्मी व उसके पति सुरेश वकील (उमर)  नें बुरी तरह अतिक्रमण कर लिया है। ये कुआँ गाँव परियत का एक ऐसा पुराना कुआँ है जहाँ से गाँव के किसान अपने खेतों की सिंचाई किया करते थे, मगर भूमाफिया दबंगों के कारण आज यह कुआँ अपने दुर्भाग्य और दुर्दिन पर जार-जार से रो रहा है। सनद रहे कि उपरोक्त दबंग व भूमाफिया विजय लक्ष्मी एवं उसके पति सुरेश वकील (उमर) दूसरे के जमीन को कब्जाने की नियति रखने वाले लोभी प्रकृति के हैं  जिनकी कुदृष्टि दूसरों के जमीन पर हमेंशा लगी रहती है।

 ज्ञात रहे कि उपरोक्त कुँआ को पूर्व, पश्चिम और उत्तर की ओर से पूरी तरह भूमाफियाओं नें घेर लिया है। इसमें दक्षिण की ओर से एक लिंटर पड़ा है। भूमाफियाओं नें इसे सिर्फ आगे की ओर कुआँ  तक जानें के लिए एक छोटा सा सँकरा रास्ता छोड़ा है। गाँव के सारे ग्रॉमवासी सब कुछ जानते हुए उपरोक्त भूमाफियाओं के दबंगई के डर से मौन साध लिए हैं, गाँव वाले इनके आगे बुरी तरह सहमें से रहते हैं। ये माफिया खुलेआम कहते हैं कि कोई हमारा कुछ बिगाड़ नहीं सकता जिसको मेरी शिकायत जहाँ भी करनी हो कर दे। सपा के कुछ छुटभैया नेता परोक्ष रूप से इनके सहायक हैं जिनके दम पर ये भूमाफिया अपने घिनौने काम को अंजाम देते हैं। सनद रहे कि जब कुँआ के अतिक्रमण की जानकारी  पहली बार सरकारी अधिकारियों को मिली तो ऑनन-फॉनन में इस अतिक्रमण को गिरा दिया गया, मगर पैसे और पावर के दम पर ये दबंग फिर इस कुँआ का बुरी तरह अतिक्रमण करने में सफल हो गए।

आज आवश्यकता है इस कोतवाली के कुँआ का अतिक्रमण पूरी तरह से छुड़ाया जाए व माननीय मुख्यमंत्री के आदेशों का यथाशीघ्र पालन कराया जाए। ग्रॉम परियत के सारे ग्रॉमवासी , आस-पास के किसान व पथिक इस कुँआ के अतिक्रमण से छुटकारा चाहते हैं।

आंदोलन की तैयारी  

शासन-प्रशासन की लापरवाही के कारण आज तालाब और कुँओं का न तो ठीक से रख-रखाव हो रहा है  न ही अवैध अतिक्रमण से बचाव । इसी को ध्यान में रखते हुए सामाजिक कार्यकर्ता व राष्ट्रवादी नेता पं0 बाबा नंद किशोर मिश्र व डॉ0 संतोष  राय नें पूरे देश में एक आंदोलन चलाने का निर्णय लिया है, इसके लिए जहाँ कहीं भी कुँआ व तालाब का अतिक्रमण है उसे हटवाने के लिए वे हरसंभव प्रयास करेंग चाहे उसके लिए किसी भी उन्हें किसी भी सीमा तक जाना हो। और, इसकी शुरूआत उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव परियत से कर दी है। ज्ञात रहे कि यहाँ के कुँआ का अतिक्रमण हटाने के लिए पं0 बाबा नंद किशोर मिश्र नें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को 15/19 अप्रैल, 2016 को एक पत्र भी लिखा है। अब देखना है उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री इस पर क्या कार्यवाही करते हैं।

अवैध अतिक्रमण पर मुख्यमंत्री से शिकायत


      अवैध अतिक्रमण पर मुख्यमंत्री से शिकायत

अवैध अतिक्रमण पर मुख्यमंत्री से शिकायत

अवैध अतिक्रमण पर मुख्यमंत्री मौन

अवैध अतिक्रमण पर मुख्यमंत्री मौन

कुंआ के अवैध अतिक्रमण पर शासन-प्रश्‍ाााासन एकदम चुप

Monday, April 18, 2016

हिन्दू महासभा के संघ से मतभेद लेकिन मनभेद नहीं

राष्ट्रीय राजधानी इन्द्रप्रस्थ(नई दिल्ली)। हिंदुत्व एवं राष्ट्रवाद के विषय पर हिन्दू महासभा एवं संघ की विचारधारा में छत्तीस का आंकड़ा है लेकिन जो लोग संघ की तुलना ISIS से करते हैं या संघ मुक्त भारत की बात करते हैं तो हिन्दू महासभा उनके साथ बिलकुल नही है ।



यह बात जानना भी आवश्यक है की संघ की स्थापना में हिन्दू महासभा का बहुत बड़ा योगदान था और संघ के संस्थापक डॉ केशवराम बलिराम हेडगेवार कांग्रेस के सदस्य थे औरे उन्होंने कांग्रेस की मुस्लिम तुष्‍टीकरण  की नीतियों से तंग आकर कांग्रेस को छोड़कर संघ की स्थापना की और साथ ही साथ हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय  उपाध्यक्ष भी बने तथा संघ के स्वयंसेवक हिन्दू महासभा की भी गतिविधियों में हिस्सा लेते थे ।
संघ एवं हिन्दू महासभा के सम्बन्ध डॉ हेडगेवार की मृत्यु के पश्चात बिगड़ते चले गए और उसका श्रेय संघ के दूसरे सर-संघचालक गुरु गोलवलकर जी को जाता है, क्योंकि वो हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय कार्यालय मंत्री का पद पाने के लिए जी तोड़ संघर्ष कर रहे थे तो वह उस पद के चुनाव को हार गए, इस हार को गुरूजी पचा नही पाए और संघ को इन्होने हिन्दू महासभा एवं इसकी गतिविधियों से अलग रखना शुरू कर दिया ।

यहाँ तक की विभाजन से पहले हुए केन्द्रीय सभा के चुनावों में गुरु जी ने हिन्दू महासभा को हराने के लिए संघ के स्वयंसेवकों को आदेश दिया की चुनावों में कांग्रेस का साथ दें, ऐसा होने पर हिन्दू राष्ट्र एवं अखण्ड भारत की प्रबल समर्थक हिन्दू महासभा को काफी नुकसान हुआ कांग्रेस और मुस्लिम लीग को काफी फ़ायदा मिला तथा परिणाम स्वरुप पाकिस्तान का निर्माण हिन्दुओं की ही लाशों पर हुआ ।

समय-समय पर संघ को गांधीवादी समर्थन देते रहे लेकिन गांधीवादी लोग उस समय भी वीर सावरकर और हिन्दू महासभा को गाली भी देते रहे और आज भी गांधीवादी लोग वीर सावरकर को गाली देते हैं, लेकिन सन 1950 में संघ ने एक दूसरी कांग्रेस बनाई जिसका नाम रखा जनसंघ और यह पार्टी कांग्रेस की ही फोटोकॉपी बनी ।
संघ की शाखाओं में गाया जाने वाला राष्ट्रवादी गीत "नमस्ते सदा वत्सले" वीर सावरकर के बड़े भ्राता गणेश सावरकर ने ही लिख था ।

अब कुछ दिनों से चलन हो चला की कभी संघ की तुलना कभी ISIS से की जाती है तो कभी संघमुक्त भारत के नारे को भी बोलते हैं  जो लोग ऐसा कह रहे हैं वो लोग कभी ISIS मुक्त भारत या आतंकवाद मुक्त भारत की बात नही करेंगे ।

न जाने कितने स्वयं सेवक कम्युनिस्‍ट  पार्टी एवं मुस्लिम लीग के द्वारा आये दिन मारे जाते हैं और ऐसा नही है की हिन्दू महासभा ऐसी हत्याओं का खण्डन नही करती जबकी प्रतिक्रिया भी देती है लेकिन हिन्दू महासभा की भी यही अपेक्षा रहती है की ठीक है यदि संघ राजनितिक रूप से हिन्दू महासभा के साथ न खड़ा हो कम से कम हिंदुत्व एवं राष्ट्रवाद के विषयों पर तो हमारा साथ दे ।  माना की हम लोगों के संघ से राजनितिक मतभेद हैं लेकिन मनभेद तो न रखें या उदासीनता न रखें ।

हम लोगों का मतभेद संघ की विचारधारा से नही है अपितु उसमे बैठे लोगों की संघ से इतर विचारधारा से है जो हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु मेल नही खाती ।

पुत्र कितना भी कुपुत्र क्यों न हो जाये लेकिन यदि पुत्र पर कोई अन्य बाहरी व्यक्ति हमला करता है तो धर्म यही कहता है की पुत्र जो की अब कुपुत्र है उसका साथ दिया जाए शायद उसमे परिवर्तन आ जाय चाहे वो मतभेद भी रखे ।

लेकिन हिन्दू महासभा को राजनीति में शून्य करने के कई कारक हैं और उसके लिए हम भी जिम्मेदार हैं क्योंकि हमारे पुर्व के कई सम्मानित नेता भी उदासीन रहे राजनिति को लेकर ।

आज के परिदृश्य में हिन्दू महासभा की जो स्थिति है उस पर बोलना उचित नही है लेकिन इतना अवश्य कहूँगा की यदि मैंने थोडा बहुत भी माँ भवानी की पूजा की है तो माँ भवानी की कृपा से हिन्दू महासभा ही इस राष्ट्र का भविष्य होगा ।  हम हिन्दू महासभाई दृढ संकल्प के साथ मतभेद/मनभेद को भुलाकर संगठन को राजनीति में विकल्प के रूप में खडा करें ।  बात रही संघ के लोगों की तो वे हमारा कभी साथ नही देंगे लेकिन हम कभी भी धर्म, राष्ट्र एवं हिंदुत्व के विषय पर उन शक्तियों का साथ नही देंगे जो लोग हमारे भी विरोधी हैं ।
जय भवानी जय हिन्दू राष्ट्र ।

Source:




Wednesday, April 13, 2016

कश्मीरी अलगाववादी गुलाम नबी फई का इस्लामिक विस्तारवादी ईमेल एवं मेरा उत्तर



Email from Kashmiri Separatist Gulam Nabi Fai & my answer

इन्द्रप्रस्थ, राष्‍ट्रीय राजधानी, दिल्ली

दिनांक 11/04/2016 रात्रि  10.12 को मुझे gnfai2003@yahoo.com से ईमेल प्राप्त हुआ जो की कश्मीरी अलगाववादी गुलाम नबी फई का है, जब मुझे इसका ईमेल प्राप्त हुआ तब जानकार आश्चर्य हुआ की ये सूअर की औलाद कई लोगों को Junk ईमेल भेज रहा है ! यह अपने आपको बुद्धिजीवी एवं मानवतावादी दिखाने का ढोंग करता है जो की है नही !


पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए जासूसी करने की बात कबूल करने वाले कश्मीरी अलगावादी गुलाम नबी फई ने दावा किया था कि उसने बीते दशकों के दौरान भारत सरकार के कई मंत्रियों से नियमित तौर पर मुलाकात की थी और अमेरिका में भारतीय दूतावास के साथ संवाद का एक माध्यम भी बना लिया था।

जुलाई 2011 में फई ने अमेरिका की एक अदालत में आईएसआई का एजेंट होने का आरोप स्वीकार कर लिया था । अमेरिकी अदालत ने कश्मीरी अलगाववादी गुलाम नबी फई को कश्मीर पर अमेरिका की नीति को अवैध तरीके से प्रभावित करने के आरोपों में दो वर्ष कारावास की सजा सुनाई ! उसने एक बयान में कहा था कि भारत के मंत्रियों और अधिकारियों से मिलना नई दिल्ली के साथ संवाद कायम करने की रणनीति का हिस्सा था। बीते कई वर्षों के दौरान उसने संयुक्त राष्ट्र महासचिव के पूर्व वरिष्ठ सलाहकार यूसुफ बक और वर्ल्ड कश्मीर फ्रीडम मूवमेंट के अध्यक्ष रहे अयूब ठुकेर के साथ चंद्रशेखर, नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल के कई सदस्यों से मुलाकात की थी। फई ने दावा किया था की बीते वर्षों के दौरान भारतीय दूतावास के चार अलग-अलग अधिकारियों से मुलाकात की थी।

मैंने कुछ दिनों पूर्व NIT के गैर-कश्मीरी छात्रों के समर्थन में अपना व्यक्तव्य दिया था और इस सूअर ने मेरे ईमेल ID drsrai@yahoo.com पर अपने अलगाववादी एवं आतंकी लक्ष्य का प्रचार करने के लिए JUNK मेल भेजा ! मैंने इसके ईमेल का उत्तर कैसे दिया उसे अवश्य पढ़ें :-
डॉ गुलाम नबी फई का ईमेल :-

From: Ghulam-Nabi Fai <gnfai2003@yahoo.com> Date: 11/04/2016 22:12 (GMT+05:30) To: Syed Fai <gnfai2014@gmail.com>
Subject: Resolution of Kashmir can Unlock War in Afghanistan

Dr Ghulam Nabi Fai

The idea that the dispute over the status of Jammu and Kashmir can be settled only in accordance with the will of the people, which can be ascertained through the democratic method of a free and impartial plebiscite, was the common ground taken by all the three parties to the dispute, viz., the people of Kashmir,Pakistan, and India. It was supported without any dissent by the United Nations Security Council and prominently championed by the United States, Great Britain,France and other democratic states.

It became a matter of controversy only after India realized that she could not win the people's vote. Due to the cold war, she found a firm ally for her obstructionist position in the Soviet Union. With the end of the cold war, the original perspective should have been recovered. When Britain liquidated her Indian empire, the question arose: to whom would power be transferred? This was settled be a process of election. Through a tripartite agreement concluded by Britain, the Congress and the Muslim League, British India was partitioned between the successor states of India and Pakistan. The
disposition of those territories not directly administrated by Britain, but ruled by feudal princes under British paramountcy, also had to be determined.
The principle that followed logically from the partition of British India was that these princely states should merge, unless they could remain independent, with India or Pakistan according to (a) whether they were contiguous to one or the other and (b) what their people wished. The technical form that the merger took was the signing of an Instrument of Accession by the ruler. But the act was not and could not be, based on the arbitrary decision of one individual,
for if it did not have popular approval, the people would revolt and an
international conflict would arise. In fact, out of the more than 562 cases, there were disputes only in three. In two of these, Hyderabad and Junagarh, theruler was Muslim while the majority was Hindu. When the ruler hesitated or refused to sign the Instrument of Accession to India, contrary to the popular will, India felt justified in marching in her troops and annexing the territories. Her decision obtained international acquiescence.

Kashmir was the third case. The largest of all states and the only one bordering on four countries  Pakistan, India, China, and Afghanistan  it was the opposite of Hyderabad and Junagarh: the ruler was Hindu while the overwhelming majority of the people was Muslim. There was an additional and unique circumstances:

unlike all other states, Kashmir had witnessed an open revolt against the ruler in 1946. Ousted from Srinagar, his capital, on 26 October 1947, the Maharaja called upon India to send her army to quell the revolt. India set the condition that he sign the Instrument of Accession to India and, without waiting for his signature, sent her troops into the state on 27 October 1947. The act was so incongruous with what had happened elsewhere  where in all cases
the people's wishes had prevailed  that India knew it would provoke violent opposition from the people of the state as well as from Pakistan and outrage world opinion, India, therefore, felt compelled to declare that the accession executed by the ruler -- the Maharaja was "provisional" and subject to "a reference to the people."

Between October and December of 1947, the Azad Kashmir forces successfully resisted India's armed intervention and liberated one‑third of the State. Realizing it could not quell the resistance, India brought the issue to the United Nations in January 1948. The
Security Council discussed the question exhaustively from January to April 1948. It came to the conclusion that it would be impossible to determine responsibility for the fighting and futile to blame either side. Since both parties desired that the question of accession should be decided through an impartial plebiscite, the Security Council developed proposals based on the common ground
between them. These were embodied in the Security Council resolution # 47 of 21 April 1948 envisaging a cease‑fire, the withdrawal of all outside forces from the State and a plebiscite under the control of an administrator who would be nominated by the Secretary General. Of the United Nations. A development that hardened India's stance was Pakistan's joining military pacts
sponsored by the United States. From 1955, India took the position that, in view of this alliance, it could no longer countenance the withdrawal of its forces from Kashmir. India found a ready supporter for this position in the Soviet Union which, after 1958, blocked every attempt by the Security Council to unfreeze the situation and implement the peace plan originally accepted by both parties – India & Pakistan. This caused the paralysis of the Security Council on Kashmir  a condition which lasted from 1958 to this day.

 Even today, India's occupation of Kashmir has been left undisturbed by the international community, even though its validity has never been accepted. At no stage, however, have the people of Kashmir shown themselves to be reconciled to it. Kashmir's record of opposition to its annexation by the Indian Union, can by no standard be reckoned as less genuinely demonstrated than that of countries of Eastern Europe under the dominance of the Soviet Union. But while the popular revolt in the countries of Eastern Europe was observed and reported by the international media, that in Kashmir has remained largely hidden from the world's view. The persistence of this problem has been a source of weakness for both India and Pakistan. It has diminished both these neighboring countries. Indeed, some discerning observers already perceive a growing awareness in the Indian middle class that the persistence of the Kashmir problem weakens India by diminishing its stature among the great powers. As a matter of fact, there have always existed saner elements in Indian public square which have questioned both the ethics and the practical advantage of India’s intransigence on Kashmir. As they have received little support from outside, they have remained mostly subdued. India's obdurate stand has been effective in creating the impression that the idea of a plebiscite is unworkable. This, however, cannot be a considered conclusive.
 In the first place, the commonsense appeal and justice of the idea is undeniable.
There is no way the dispute can be settled once and for all except in harmony with the people's will, and there is no way the people's will can be ascertained except through an impartial vote. Secondly, there are no insuperable obstacles to the setting up of a plebiscite administration in Kashmir under the aegis of the United Nations. The world organization has proved its ability, even in the most forbidding circumstances, to institute an electoral process under its supervision and control and with the help of a neutral peace‑keeping force. The striking example of this is Namibia, which was peacefully brought to independence after seven decades of occupation and control by South Africa and East Timore where the United Nations Transitional Administration organized elections which resulted in the 88-member Constituent Assembly. Thirdly, as Sir Owen Dixon, the United Nations Representative, envisaged seven decades ago, the plebiscite can be so regionalized that none of the different zones of the state (Valley, Jammu, Ladakh, Azad Kashmir and Gilat-Baltistan) will be forced to accept an outcome contrary to its wishes. 

If a credible peace process is instituted, some t's will need to be crossed and some i's dotted, but given the political will of India and Pakistan to implement their international agreement, and the will of the Security Council to secure that implementation, these can present no obstacles. It is not the inherent difficulties of a solution, but the lack of the will to implement a solution, that has caused the prolonged deadlock over the Kashmir dispute. The deadlock has meant indescribable agony for the people of Kashmir and incalculable loss for both India and Pakistan. The mantra has been repeated too often that the world powers have no alternative to relying on bilateral talks between India and Pakistan to achieve a settlement. The experience of more than sixty-nine years is ignored. No bilateral talks between India and Pakistan have yielded agreements without the active role of an external element. The world powers must recognize that there can be no settlement, negotiated or otherwise, without the active and full participation of the genuine Kashmiri leadership. In order to quicken and strengthen the peace process, the world powers would definitely recommend improving the atmosphere in Kashmir by a full restoration of civil liberties, including the liberty to express themselves peacefully on the question of their own future. A suppression of this freedom means empowering terroristic elements. This in turn paves the way for destabilizing Pakistan – something that is certainly not in India’s own interest, nor in the interest of the international community, including the United States. Peace between India and Pakistan could help unlock another conflict with even higher stakes for the United States: the war in Afghanistan. Indeed, a growing chorus of experts has begun arguing that the road to Kabul runs through Kashmir—that the U.S. will never stabilize the former without peace in the latter. Suddenly, bringing India and Pakistan together seems to be very much in America's interest.

Dr. Fai is the Secretary General of World Kashmir Awareness and can be reached at:
gnfai2003@yahoo.com OR +1-202-607-6435
इस सूअर की औलाद को मेरा उत्तर:-
On Tue, Apr 12, 2016 at 12:43 PM, drsrai <drsrai@yahoo.com> wrote To: gnfai2003<gnfai2003@yahoo.com>
Subject: Re: Resolution of Kashmir can Unlock War in Afghanistan

Mr. Fai, 

First of all I am informing you about etiquette and netiquetes that the
civilized world respects; intrusion is crime, you violated by mailing me, without knowing me; or did you intentionally did it? Let me tell you that no Hindu or Bhatriye is interested in your shit propaganda and no civilized person is interested in shit fanaticism.
It is not only your junk mail that is illegal, also the propagating the illogical ideology is nauseating, in attempt impose recited ‘tragic comedy’ by barbarians from desert cult of pedophile. At gunpoint lunatics can make someone say Moon is the Star and Sun is rotates around it, 71 Virgin shall be longing to be satisfied from the blessed male (and one is without Viagra!), Bras cause earthquake, sex with dead is sanctified by a tragic comedy text of errors, lies and horror etc. but Humans don’t believe it, once the dehumanized brainwashed barbarians are cured they will laugh at their deeds during epilepsy.

Next, I appreciate your fantasies, messing up Kashmir issue with
Afghanistan! Well, Iran and Israel can also be added to Gibraltar issue and Zionist conspiracy of making light travel faster than sound.

Now, I inform you about UN stand on Jammu & Kashmir, before

any step Pakistan/Papistan has to move out from entire State of Kashmir. First things First.


Friday, April 8, 2016

यदि गैर-कश्मीरी छात्रों के साथ कुछ गलत हुआ तो गैर-कश्मीरी राज्य में रहने वालों अलगाववादियों छात्रों तुम भी परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहो : संतोष राय

हिन्दू महासभा(राष्ट्रवादी) के राष्‍ट्रीय संयोजक डॉ संतोष राय ने मीडिया के माध्यम से कहा है की यदि श्रीनगर स्थित NIT के गैर-कश्मीरी छात्रों के साथ यदि दुर्व्यवहार चलता रहा तो गैर-कश्मीर राज्यों में कई अलगाववादी मानसिकता के भी छात्र पढ़ रहे हैं जो की आये दिन भारत विरोधी नारे लगाते रहते है और अब उन्हें भी नहीं बक्शा जाएगा और वे अब परिणाम भुगतने को तैयार रहें !

डॉ संतोष राय ने आरोप लगाते हुए कहा की जम्मू-कश्मीर पुलिस में कई लोग अलगाववादी एवं सांप्रदायिक मानसिकता के हैं और उक्त देशद्रोही पुलिस वालों ने गैर-कश्मीरी छात्रों पर मुकदमा दर्ज किया है क्योंकि गैर-कश्मीरी छात्रों ने देशभक्ति का परिचय देते हुए NIT कैम्पस में अलगाववादी छात्रों का विरोध किया था, जम्मू कश्मीर पुलिस को भारत माता कि जय और वन्देमातरम का नारा देने वाले लोग अपराधी लगते हैं तो गैर-कश्मीर राज्यों में पढने वाले वाले अलगाववादी छात्र हमें आतंकवादी ही लगेंगे, आतंकवादियों और अलगाववादियों को दंड देना अपराध नहीं है और हिन्दू महासभा के कार्यकर्त्ता ऐसे लोगों को पहचान कर कश्मीर में नहीं अपितु पाकिस्तान में धकेल देंगे !

हिन्दू महासभा के राष्‍ट्रीय  संयोजक डॉ संतोष राय ने पीडीपी/भाजपा सरकार की निंदा करते हुए कहा की ये लोग अलगाववादियों के आगे नतमस्तक हो गए हैं और यदि केंद्र की भाजपा सरकार ने JNU में जन्मे अफजल गुरु के मानष पुत्रों का फन कुचल दिया होता तो आज NIT श्रीनगर में पढ़ रहे देशभक्त गैर-कश्मीरी छात्रों के साथ ऐसा अन्याय न होता !

डॉ संतोष राय ने यह भी कहा की अब समय आ गया है की सरकार कश्मीर से धारा 370 को समाप्त करें और भारत सरकार सभी सरकारी, अर्ध सरकारी, निजी क्षेत्र के कर्मचारियों एवं सरकारी,अर्ध सरकारी, निजी विद्यालयों या महाविद्यालयों में पढने वाले छात्रों से शपथ पत्र ले की में भारत की एकता एवं अखंडता को बनाये रखूँगा, भारत की संस्कृति का सम्मान करूँगा, राष्ट्र के सम्मान को ठेस नही पंहुचाउगा और राष्ट्र समर्थक नारे भारत माता की जय एवं वन्देमातरम भी कहूँगा और जो शपथ पत्र का उल्लंघन करे तो उन्हें पदमुक्त किया जाय और देशद्रोही छात्रों को बाहर का रास्ता दिखाया जाय ! डॉ राय ने यह भी कहा की कई राष्ट्रों में “देशभक्ति कानून”(Patriotic Law) हैं और वे लोग उसी के तहत राष्ट्र की सुरक्षा हेतु कार्यवाही भी करते हैं !

Friday, March 25, 2016

भारत के सबसे बड़े गद्दार गाँधी और नेहरू थे-डॉ0 संतोष राय

मूर्ख  कांग्रेसियों को कन्हैया कुमार मे शहीद भगत सिंह  दिखता है... और वीर सावरकर में  गद्दार



''जहाँ  इंदिरा गांधी ने सावरकर को महान स्वतंत्रता सेनानी बताकर उनके सम्मान मे डाक टिकिट जारी किया था वहीं आज के ओछी मानसिकता वाले  कांग्रेसी महान स्‍वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर  को गद्दार बता रही है। एक स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह को श्रद्धांजलि देने के साथ दूसरे स्वतंत्रता सेनानी विनायक वीर दामोदर सावरकर का  अपमान .. .ये सिर्फ नीच कांग्रेसी ही कर सकते  हैं |'' उपरोक्‍त बातें अखिल भारत हिन्‍दू महासभा के वरिष्‍ठ नेता व फिल्‍म निर्माता डॉ0 संतोष राय नें आज एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्‍यम से कही । ज्ञात हो कि कांग्रेस ने बुधवार को भगत सिंह के शहीदी दिवस पर एक ट्वीट किया। इसमें वीर सावरकर को गद्दार’ और भगत सिंह को शहीद’ बताया गया है। यह ट्वीट कांग्रेस के ऑफिशियल ट्विटर हैंडल @INCIndia पर किया गया।

 अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए डॉ0 संतोष राय नें कहा कि सच्‍चाई यही है कि  विनायक दामोदर सावरकर नेहरु की आँखों में किसी रेत के कण की तरह चुभते थे ..इसलिए नेहरु के इशारे पर कांग्रेस उन्हें आज तक बदनाम करती आ रही है । वीर सावरकर विश्व के पहले क्रांतिकारी और भारत के पहले राष्ट्रभक्त थे जिन्हें अंग्रेजी सरकार ने दो आजन्म कारावास की सजा सुनाई थी…. सावरकर जी नें दो जन्म कारावास की सजा सुनते ही हँसकर बोले- चलोईसाई सत्ता ने हिन्दू धर्म के पुनर्जन्म सिद्धांत को मान लिया। इतना ही नहीं उन्हें रोज दस किलो तेल भी निकलना होता था,  बैल की जगह खुद सावरकर अपने हाथो से कोल्हू चालाकर तेल निकालते थे ।

आगे डॉ0 संतोष नें बताया कि वीर सावरकर पहले ऐसे लेखक थे जिन्होंने अंग्रेजों द्वारा ग़दर कहे जाने वाले संघर्ष को ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ नामक ग्रन्थ लिखकर सिद्ध कर दिया…. सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी लेखक थे जिनके लिखे ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ पुस्तक पर ब्रिटिश संसद ने प्रकाशित होने से पहले प्रतिबन्ध लगाया था… ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ विदेशों में छापा गया और भारत में भगत सिंह ने इसे छपवाया था जिसकी एक एक प्रति तीन-तीन सौ रूपये में बिकी थी… भारतीय क्रांतिकारियों के लिए यह पवित्र गीता थी… पुलिस छापों में देशभक्तों के घरों में यही पुस्तक मिलती थी।  

अपनी बात में आगे श्री राय नें कहा कि वीर सावरकर पहले विद्वान लेखक थे जिन्होंने हिन्दू को परिभाषित करते हुए लिखा कि-

आसिन्धु सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारत भूमिका.
पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरितीस्मृतः.

अर्थात समुद्र से हिमालय तक भारत भूमि जिसकी पितृभू है जिसके पूर्वज यहीं पैदा हुए हैं व यही पुण्य भू हैजिसके तीर्थ भारत भूमि में ही हैंवही हिन्दू है..

हिन्‍दू महासभा के वरिष्‍ठ नेता नें कहा कि वीर सावरकर प्रथम राष्ट्रभक्त थे जिन्हें अंग्रेजी सत्ता ने 30 वर्षों तक जेलों में रखा तथा आजादी के बाद 1948 में नेहरु सरकार ने गाँधी हत्या की आड़ में लाल किले में बंद रखा पर न्यायालय द्वारा आरोप झूठे पाए जाने के बाद ससम्मान रिहा कर दिया… देशी-विदेशी दोनों सरकारों को उनके राष्ट्रवादी विचारों से डर लगता था
़श्री राय नें अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि जब वीर सावरकर की धर्मपत्नी बेहद गम्भीर बीमार थी तब उन्होंने पैरोल के लिए आवेदन दिया .. अंग्रेजी कानून के मुताबिक जब भी कोई सेनानी पेरोल के लिए आवेदन देता था तो उसे अपने अच्छे चाल-चलन की गारंटी देनी होती थी .. ये प्रथा आज भी है ... लेकिन धूर्त इतिहासकार सिर्फ उनके पेरोल आवेदन को ही दिखाकर कहते है की सावरकर डर गये थे .. जबकि सच्चाई ये है की जब जेलर ने उन्हें कहा की मजिस्ट्रेट के सामने यूनियन जैक [अंग्रेजी झंडा] के सामने शपथ लेनी होगी .. तो उन्होंने साफ़ मना कर दिया और कहा की भले ही मैं  अपनी मरती पत्नी को न देख सकूं ..लेकिन मै अंग्रेजी झंडे की शपथ नही ले सकता और उन्होंने अपनी पेरोल का आवेदन वापस ले लिया | इतना ही नहीं वीर सावरकर ऐसे पहले बैरिस्टर थे जिन्होंने 1909 में ब्रिटेन में ग्रेज-इन परीक्षा पास करने के बाद ब्रिटेन के राजा के प्रति वफादार होने की शपथ नही ली… इस कारण उन्हें बैरिस्टर होने की उपाधि का पत्र कभी नही दिया गया

गोडसे फिल्‍म निर्माता डॉ0 संतोष राय नें कांग्रेस की कड़े शब्‍दों में भर्त्‍सना करते हुए कहा कि जेल में सावरकर ने दिवालों  पर नाख़ून और कोयले से कई किताबे लिखी ..जो देश आजाद होने के बाद छापी गई । सावरकर कांग्रेस की दृष्टि में इसलिए खलनायक है क्योंकि उन्होंने हिन्दू राष्ट्रवाद को जन्म दिया था .. जबकि कांग्रेस को मुस्लिम राष्ट्रवाद पसंद था। इतना ही नहीं जब भारत छोड़ो आन्दोलन अपने चरम पर था, लोग अंग्रेजों  के खिलाफ संगठित होकर विद्रोह करने लगे थे .. तब अचानक गाँधी ने चौरी-चौरा कांड का बहाना बनाकर आन्दोलन को वापस क्यों ले लिया और तो और नेताजी सुभाषचंद्र बोस नें  जब सशस्त्र हमला किया अंग्रेजों के ऊपर तब गाँधी ने लोगों  को नेताजी के आंदोलन में शामिल न होने के लिए अपील क्यों किया और उस समय नेहरू जी  का वक्‍तव्‍य था कि यदि सुभाष चंद बोस यदि भारत की धरती पर कदम रखे तो मैं तलवार लेकर उन पर सबसे पहले हमला करूँगा  ???  

आगे कांग्रेस पर डॉ0 राय नें करारा प्रहार करते हुए कहा कि मोहन दास करमचंद गाँधी सरदार भगत सिंह के परोक्ष रूप से हंता (हत्‍यारे)  थे क्‍योंकि अहिंसा नीति के पोषक गाँधी  जी  नें अमर  हुतात्‍मा सरदार भगतसिंह के  फांसी वाले मामले पर कहा था, ‘‘हमें ब्रिटेन के विनाश के बदले अपनी आजादी नहीं चाहिए ’’ और आगे कहा, ‘‘भगतसिंह की पूजा से देश को बहुत हानि हुई और हो रही हैफाँसी शीघ्र दे दी जाए ताकि 30 मार्च से करांची में होने वाले कांग्रेस अधिवेशन में कोई बाधा न आवे।

डॉ0 राय नें मोहनदास करम चंद गाँधी  पर मुस्लिम कट्टरवाद का बढ़ावा देनें का आरोप लगाते हुए कहा कि मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। वहीं केरल के मोपला में मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं से  मारकाट की जिसमें लगभग 1500 हिन्दू  मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गाँधी जी नें  इस हिंसा का विरोध नहीं किया वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया जो अत्‍यंत निंदनीय कृत्‍य था । इतना ही नहीं देश का बँटवारा कराने वाले को मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।

हिन्‍दू महासभा के वरिष्‍ठ नेता डॉ0 राय नें आगे कहा कि गाँधी नें भारत माता के वीर सपूतों का भी घोर अपमान किया, उन्‍होंने अनेंक अवसरों पर छत्रपति शिवाजीमहाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।

फिल्‍म निर्माता डॉ0 संतोष राय को देश के विभाजन के लिए प्रमुख रूप से गाँधी को  जिम्‍मेदार बताते  हुए कहा कि 14-15 जून, 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला थाकिन्तु गान्धी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा। फिर भी देश का  विभाजन करने वाले को इस देश के वासी राष्‍ट्रपिता कहते हैं, इससे बड़ा देश का दुर्भाग्‍य क्‍या हो सकता है ? इतना ही नहीं गाँधी नें गौ हत्या पर प्रतिबंध  लगाने का पूरजोर विरोध किया ।  

हिन्‍दू महासभा के वरिष्‍ठ नेता श्री संतोष राय नें गाँधी के अहिंसा को ढोंग बताते हुए कहा कि  1939 के द्वितीय विश्व युद्ध में गाँधी ने भारतीय सैनिको को ब्रिटेन के  लिए हथियार उठा कर लड़ने के लिए प्रेरित किया  जबकि वो हमेंशा अहिंसा की पीपनी बजाते रहते थे वहीं गाँधी और नेहरू दोनों पेशे से वकील थे तो क्‍या भगत सिंह जी का मुकदमा नहीं लड़ सकते थे । इनकी नजरों में ब्रिटिश हुकूमत द्वारा भगत सिंह को फाँसी देना हिंसा नहीं थी ।  

डॉ0 राय नें गाँधी को देश के बँटवारे के लिए जिम्‍मेदार बताते हुए कहा कि देश को बँटवारे में गाँधी नें मुस्लिमों को उकसाया । धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत के जरिये गाँधी जी का यही मुस्लिम तुष्टिकरण देश के विभाजन का भी कारण बनाजब २६ मार्च १९४० को जब मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की अवधारणा पर जोर दिया तब गाँधी जी का वक्तव्य था – अन्य नागरिकों की तरह मुस्लिम को भी यह निर्धारण करने का अधिकार है कि वो अलग रह सकेहम एक संयुक्त परिवार में रह रहे हैं ( हरिजन ६ अप्रैल १९४० ) इतना ही नहीं अगर इस देश के अधिकांश मुस्लिम यह सोचते हैं कि एक अलग देश जरूरी है और उनका हिंदुओं से कोई समानता नहीं है तो दुनिया की कोई ताक़त उनके विचार नहीं बदल सकती और इस कारण वो नए देश की मांग रखते है तो वो मानना चाहिएहिन्दू इसका विरोध कर सकते है ( हरिजन १८ अप्रैल १९४२ )। दूसरे शब्दों में कहें तो गाँधी जी ने मुसलामानों को पाकिस्तान बनाने के लिए प्रेरित ही किया। इस घटना के बाद वल्लभ भाई ने भी बंटवारा स्वीकार करने का फैसला किया।

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए डॉ0 संतोष राय ने कहा कि  ये वीर सावरकर जी ही थे जिन्होंने लन्दन के इण्डिया हाउस में अंग्रेजो के नाक के नीचे ही सेनानियों को तैयार करते थे .. मदन लाल धिंगरा जैसे शहीदों को उन्होंने ही तैयार किया था .. लन्दन में जब अंग्रेजो ने उन्हें गिरफ्तार किया तो वे पानी के जहाज  से कूदकर फरार हो गये .. और कई दिनों तक समुद्र में तैरने के बाद फ्रांस पहुंच गये ।  

फिल्‍म निर्माता राय नें बताया कि वीर सावरकर माँ भारती के पहले सपूत थे जिन्हें जीते जी और मरने के बाद भी आगे बढ़ने से रोका जाता रहा पर आश्चर्य की बात यह है कि इन सभी विरोधियों के घोर अँधेरे प्रतिरोध को  चीरकर आज वीर सावरकर के राष्ट्रवादी विचारों का सूर्य उदय हो रहा है………जिसे कांग्रेस जैसी देश की गद्दार पार्टी जिसने देश के दो टुकड़े करा दिये, नहीं रोक सकती।  

डॉ0 संतोष राय नें युवाओं का आह्वान करते हुए कहा कि हर युवा को भारत का स्वतंत्रता संग्राम पढ़ना चाहिए जिससे आपको विश्‍वास हो जायेगा की नेहरु और गाँधी असल में सेनानी नही बल्कि अंग्रेजों  के दलाल थे .. एक तरफ अंग्रेज सरकार स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानियों को फाँसी से लेकर कालेपानी की सजा देती थी ..लेकिन इन दोनों दलालों को कभी तीन सालो से ज्यादा जेल में नही रखा .. गाँधी को तो अंग्रेज जेल में नही बल्कि आलिशान आगा खान के पैलेस में रखते थे ...जहाँ वो सुरा और सुन्दरी का जमकर मजा ले सकते थे |

अंत में डॉ0 संतोष राय नें कहा कि जो कुछ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने युग पुरुष वीर सावरकर जी के बारे में कहा है वह सोनिया गाँधी की अज्ञानता और महामूर्खता को  दर्शाता है  मेरी यह भी धारणा बन गई है कि कांग्रेस में अब कोई स्वाभिमानी व्यक्ति नहीं रह गया है जो ऐसी जाहिल महिला के नेतृत्व को अस्वीकार करने का साहस दिखा पाए|  १९०६-१० के समय में जब वीर सावरकर लंदन में अपने क्रन्तिकारी विद्यार्थी साथियों के साथ मिलकर हिन्दुस्थान की स्वतंत्रता के लिए रोजना जलसे – जलूस कर रहे थे उस समय (जवाहर लाल नेहरु) भी वहां पढ़ रहे थे और वह इन आन्दोलनों से दूर रहकर संभवतः अपनी अंग्रेज आया के आंचल में छुपे रहते थे|

वीर विनायक दामोदर सावरकर के तप, तपष्‍या और त्‍याग के कारण इतने महानदसियों गाँधी और जवाहर उन पर कुर्बान किये जाएं तो भी कम पड़ेंगे ।

 गाँधी नेहरु की देश को जो देन  है वह मुख्यतः यह है

१.  १९४७ में देश विभाजन

२.  कश्मीर समस्या

३.  १९६२ में चीन से लड़ाई में हिन्दुस्थान की पराजय

तभी तो जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने श्री मोहन दास करमचंद गाँधी को अंग्रेजों का एजेंट कहा है|

महान वीर सावरकर के मुकाबले में गाँधी और नेहरु का कोई वजूद ही नहीं है|


देश के बँटवारे वाले प्रमाणपत्र पर  हस्‍ताक्षर नेहरू के थे, सुभाष चंद्र बोस के जीवन को बर्बाद करने वाले नेहरू थे और चंद्रशेखर आजाद को यदि किसी नें छल से मरवाया तो वे नेहरू ही थे। इसलिए देश को आजाद देश के क्रांतिकारियों ने करवाया था न कि अंग्रेज के दो एजेंट गाँधी और नेहरू नें ।  इस मसले पर हिन्‍दू महासभा किसी भी जाँच के लिए तैयार है । हिंदू महासभा मांग करती है कि सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद से जुड़ी जितनी फाइलें हैं उसे सार्वजनिक किया जाए ।  

Friday, March 18, 2016

यू0पी0 मडि़याहूँ पुलिस ने दबाव देकर बुजुर्ग महिला से हस्‍ताक्षर कराया


डॉ0 संतोष राय / Dr. Santosh Rai

बरसठी/मडि़याहूँ, 0प्र0 ।  प्रार्थिनी राजकुमारी देवी प/ति श्री डॉ0 रमाकांत गुप्ता ग्रॉम/पोस्ट परियत, थाना/क्षेत्र बरसठी, तहसील -मडि़याहूँ, जिला- जौनपुर, उत्तर प्रदेश, दिनांक--5/03/2016 ऑनलाइन एक पत्र माननीय मुख्‍यमंत्री उत्‍तर प्रदेश के नाम से  थाना बरसठी  के बनारसी लाल (दीवान) नाम का पुलिस अधिकारी जिसका मोबाइल नंबर: 07388791887 है, के विरूद्ध दिया था जिसके बाद तहसील मडि़याहूँ के सीओ के किसी अधिकारी का श्रीमती राजकुमारी देवी के  मोबाइल पर  फोन आया कि आपका बयान लेना है तत्पश्चात राजकुमारी देवी  14/03/2016 को अपना बयान दर्ज कराने गई लेकिन वहाँ पर सीओ साहब के कोई अन्य अधिकारी थे जिन्होंने अपने हाथ से बयान लिखा लेकिन बयान में मुख्य बातें यह कि जो उनके पति से उपरोक्त भ्रष्‍ट अधिकारी बनारसी लाल ने अभद्रता, अपशब्द व अशिष्टता से बात किया वो नहीं लिखा और उसके अभद्रता के बाद उनके  पति का स्वास्थ्य खराब हो गया, ये भी नहीं लिखा गया।

वहां  सीओ कार्यालय में वहाँ के अधिकारी स्वयं बयान लिखकर व रिटायर्ड प्रिंसिपल रह चुके श्रीमती राजकुमारी देवी पर  दबाव बनाकर हस्ताक्षर करा लिये और कहा कि थाने जाकर समझौता कर लेना।

पुन: उन्‍होंने आगे मुख्‍यमंत्री को कराए गए ऑनलाइन ईमेल में लिखा है कि   सीओ कार्यालय में दिये गये बयान की कॉपी में उनके द्वारा किया गया हस्ताक्षर मान्य नहीं होगा। इसलिए उनके  द्वारा आपको दिया गया पत्र ही उनका पूरा  बयान है जिसे मैं पुनः संलग्‍न कर ईमेल किया गया है, उन्‍हें  पूरा विश्वास है कि मुख्‍यमंत्री उनके साथ पूरा न्याय करेंगे।

आगे उस पत्र में राजकुमारी देवी ने लिखा है कि उनकी उम्र करीब 70 साल हो गई है, अतः जिस अधिकारी को बयान लेना हो वो हमारे घर आ सकता है , अधिक उम्र व गठिया रोग के कारण पति-पत्नी अधिक नहीं चल सकते व पति के सीने में अक्सर दर्द रहता है। पुलिस जनसेवक होती है वो कोई भी बयान लेने हमारे घर फोन करके आ सकती है ।

ज्ञात रहे कि हिन्‍दू महासभा की नेता रीता राय ने जौनपुर के एस0पी0 को फोन करके सारे घटना की पूरी जानकारी दिया था । तत्‍पश्‍चात एसपी जौनपुर नें मडि़याहूँ के  सी0 ओ0 को फोन करके घटना की पूरी रिपोर्ट माँगी थी मगर सी0ओ0 मडि़याहूँ  ने कोई विशेष दिलचस्‍पी नही दिखाया बल्कि उनके कार्यालय के अधिकारी आरोपी पुलिस अधिकारी बरसठी के बनारसी लाल को पूरी तरह बचाने में जुट गए और बोले कि जाकर बरसठी थाने में समझौता कर लेना इससे ये साबित हो गया पुलिस का असली चेहरा क्‍या होता है, जब पुलिस समाज के वरिष्‍ठजनों के साथ जब ऐसा कर रही है तो और आम लोगों के साथ क्‍या करती होगी । वैसे बरसठी पुलिस थाने में यातना देनें के लिए कुख्‍यात  है । सन् 1982 के आस-पास बरसठी पुलिस नें एक दलित मुसहर को थाने में यातना देकर मार डाला था ।

वरिष्‍ठ जनों के उत्‍पीड़न का पूरा मामला  इस प्रकार था
सपा के गुण्‍डा राज में वरिष्‍ठ नागरिकों का पुलिस द्वारा उत्‍पीड़न किया जा रहा है
जौनुपर, बरसठी की पुलिस मामले की पूरी लीपा-पोती में जुटी

सपा के गुण्‍डा राज में वरिष्‍ठ नागरिकों का पुलिस द्वारा उत्‍पीड़न किया जा रहा है। ऐसे ही एक मामला उत्तर प्रदेश, जिला जौनपुरब्लॉक बरसठी, थाना बरसठी के अंतर्गत है । मालूम रहे कि बरसठी थाने का  बनारसी लाल (दीवान) नाम का पुलिस अधिकारी जिसका सीएनओ नंबर 77217126  व  मोबाइल नंबर: 07388791887 है, जो अत्यंत भ्रष्ट, रिश्वतखोर और बड़े-बुजुर्गों को अपमानित करने वाला प्रकृति का है।
उपरोक्त भ्रष्ट अधिकारी बनारसी लाल (दीवान) नें ग्राम/पोस्ट परियत, जिलाः जौनपुर, उप्र के सम्मानित निवासी व करीब 70वर्षीय बुजुर्ग बीएमएस डॉ0 रमाकांत गुप्त/पुत्र स्वर्गीय इंसपेक्टर भगवती प्रसाद गुप्त व उनकी पत्नी रिटायर्ड सरकारी स्कूल की प्रधानाध्यापिका राजकुमारी देवी के साथ पुलिसिया गुण्डई दिखाते हुए उनके साथ बहुत ही घटियां, शर्मनाक व अभद्र भाषा का प्रयोग किया व एक अपराधी की तरह दुर्व्‍यवहार करते हुए उन्हें थाने चलने को जबरन मजबूर कर रहा था, इस उपरोक्त अधिकारी के साथ दो पुलिस वाले और थे जो उपरोक्त भ्रष्ट अधिकारी का साथ दे रहे थे, उपरोक्त घटना 4 मार्च, 2016 दिन के करीब साढ़े बारह बजे की है ।
इतना ही नहीं डॉ0 रमाकांत गुप्त को थोड़ा कपड़े पहनने में देर होने पर उपरोक्त पुलिस अधिकारी बनारसी लाल (दीवान)  ने अत्यंत गंदे व अभद्र शब्दों का प्रयोग करते हुए अपमानित किया और बोला कि -‘‘जल्दी कर अभी तक तैयार नहीं हुआ तू‘‘। उपरोक्त पुलिस अधिकारी नें बुजुर्ग डॉ0 रमाकांत गुप्त की पत्नी के साथ  गंदी व अशिष्ट अपशब्दों वाली भाषा का प्रयोग करते हुए बोला, ‘‘तुम यहाँ-वहाँ नाचना बंद कर, फाल्तू बकवास मत कर‘‘। 
सनद रहे कि  मामला जमीन से संबंधित था, डॉ0  रमाकांत गुप्त ट्रांसफार्मर के पास एक दीवार का निर्माण करा रहे थे क्योंकि गेद खेलते समय बच्चों का गेद ट्रांसफार्मर के पास चला जाता था जिससे बच्चों के प्राण जानें  का खतरा बना रहता है। इस ट्रांसफार्मर हटाने की शिकायत कई बार शासन-प्रशासन से किया गया मगर अंधेर राज्य में जायज मांगे कभी पूरी ही नहीं होती।  इस संदर्भ में उपरोक्त दीवान रिवश्वखोर अधिकारी नें ग्रॉम प्रधान से भी कोई बात भी नहीं किया।
70वर्षीय बुजुर्ग डॉ0 रमाकांत गुप्त की पत्नी राजकुमारी देवी रिटायर्ड सरकारी जूनियर स्कूल की प्रधानाध्यापिका रह चुकी हैं जो बुद्धिजीवी समाज का प्रतिनिधित्व भी करती हैं जिनके पढ़ाए छात्र एसडीएम, डीएम तक बन चुके हैं । लेकिन उनके साथ भी इस पुलिस अधिकारी नें गंदे, घिनौने व मर्यादाहीन  शब्दों का प्रयोग किया, वो ऐसा कि पुलिस की वर्दी के आगे किसी का कोई सम्मान ही न  हो मानो बस सब उस उपरोक्त अधिकारी के दास हों।
70 वर्षीय बुजुर्ग डॉ0  रमाकांत गुप्त पेशे से डॉक्टर हैं जो हमेंशा गरीबों के ईलाज में अपना जीवन न्योछावर कर दिया, जिनका जीवन बेहद सादगी से भरा और पवित्र रहा है । डॉ0 रमाकांत गुप्त का अपराध से कोई वास्ता कभी नहीं रहा है। इनकी उम्र करीब 70 वर्ष की है, क्या वे थाने में ले जानें लायक थे ? यदि उपरोक्त अधिकारी को कोई पूछताछ करनी थी तो उनकी उम्र देखकर उनके घर पर भी हो सकती थी। 
उपरोक्त पुलिस अधिकारी (दीवान) जो महादुष्‍ट, बर्बर व्‍यवहार का था उसकी दरिंदगी व अभद्र भाषा के बाद डॉ0 रमाकांत गुप्त का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा उनके सीने का दर्द और बढ़ गया, उनको हार्ट अटैक आते-आते बचा जिसका ईलाज चल रहा है। ज्ञात रहे कि डॉ0 रमाकांत गुप्त के सीने में  अक्सर दर्द होता रहता है जिसके लिए हमेंशा दवाएँ खाते रहते हैं। उपरोक्त पुलिस अधिकारी (दीवान) के दुर्व्‍यवहार से बुजुर्ग डॉ0  रमाकांत गुप्त का स्वास्थ्य और बिगड़ने लगा अगर उनको कुछ होता है तो उसके लिए भ्रष्ट, रिश्वतखोर बनारसी लाल (दीवान) व बरसठी थाने का थानाध्यक्ष  जिम्मेदार होगा ।
डॉ0  रमाकांत गुप्त से उपरोक्त बरसठी थाने का (दीवान)  द्वारा अपराधियों की तरह बर्ताव से वे बेहद मानसिक अवसाद में हैं क्योंकि वे पूरा जीवन सादगी से व्यतीत करने वाले समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से एक हैं, जिनको किसी तरह के अपराध से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं रहा है। ज्ञात रहे कि बरसठी की बर्बर पुलिस अपने गंदे व घिनौने कामों के लिए कुख्‍यात है। सन् 1982 के करीब बरसठी की बर्बर पुलिस नें एक आदिवासी मुशहर को पीटते-पीटते मार डाला था जिसके चल्‍ते बहुत हंगामा हुआ था ।
ओर तो और इस भ्रष्ट पुलिस अधिकारी ने बुजुर्ग दंपत्ति डॉ0  रमाकांत गुप्त व राजकुमारी देवी को रिश्वत देने के लिए बाध्य कर दिया, रिश्वत देने के बाद तब जाकर उस भ्रष्ट व रिश्वतखोर  उपरोक्त (दीवान)  ने बुजुर्ग दंपत्ति की जान छोड़ी। डॉ0  रमाकांत गुप्त, उनकी पत्नी राजकुमारी देवी व उनका पूरा परिवार भ्रष्ट अधिकारी बनारसी लाल (दीवान) के दुर्व्‍यवहार से बुरी तरह भयभीत व मानसिक सदमें में है ।
इस बुजुर्ग दंपत्ति नें उपरोक्त महाभ्रष्ट पुलिस अधिकारी बनारसी लाल (दीवान) की जौनपुर एसपी से शिकायत कर अविलंब दण्‍डात्‍मक कार्यवाही की मांग किया है ।  क्योंकि बरसठी थाने के दीवान नें  70वर्षीय बुजुर्ग दंपत्ति का घोर अपमान किया है, उनके साथ अमर्यादित, गंदे, अशिष्ट भाषा का प्रयोग किया है व मानसिक रूप से प्रताडि़त किया है व उन्हें रिश्वत देनें के लिए मजबूर किया । उपरोक्‍त  भ्रष्‍ट पुलिस अधिकारी को बचाने के लिए थाने के बड़े, आला पुलिस अधिकारी थानाध्यक्ष ने पूरा एड़ी-चोटी का जोर लगाना शुरू  कर दिया है । थानाध्‍यक्ष महोदय मामले के लीपा-पोती में पूरी तरह से जुट गए हैंवे पत्रकारों को बता रहे हैं कि ऐसा कुछ मामला था ही नहीं ।
उपरोक्‍त घटना की हिन्‍दू महासभा के वरिष्‍ठ अधिकारी पं0 बाबा नंद किशोर मिश्र, रीता राय, रविन्‍द्र द्विवेदी  नें तीव्र व कड़े शब्‍दों में निंदा की है व दोषी व भ्रष्‍ट पुलिस के विरूद्ध अविलंब कार्यवाही की मांग की है, माँग पूरी न होने पर जनआंदोलन की शुरूआत करने की बात कही है ।
(लेखक एमबीबीएस डॉक्‍टर व फिल्‍म निर्माता है)

 

यू0पी0 मडि़याहूँ पुलिस ने दबाव देकर बुजुर्ग महिला से हस्‍ताक्षर कराया


http://www.jansarokaar.com/corrupt-uttar-pradesh-polic-banarsi-lal.html

 

यू0पी0 मडि़याहूँ पुलिस ने दबाव देकर बुजुर्ग महिला से हस्‍ताक्षर कराया

 

 

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यू0पी0 मडि़याहूँ पुलिस ने दबाव देकर बुजुर्ग महिला से हस्‍ताक्षर कराया


यू0पी0 मडि़याहूँ पुलिस ने दबाव देकर बुजुर्ग महिला से हस्‍ताक्षर कराया


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सपा के गुण्‍डा राज में वरिष्‍ठ नागरिकों का पुलिस द्वारा उत्‍पीड़न किया जा रहा है



सपा के गुण्‍डा राज में वरिष्‍ठ नागरिकों का पुलिस द्वारा उत्‍पीड़न किया जा रहा है

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सपा के गुण्‍डा राज में वरिष्‍ठ नागरिकों का पुलिस द्वारा उत्‍पीड़न किया जा रहा है

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सपा के गुण्‍डा राज में वरिष्‍ठ नागरिकों का पुलिस द्वारा उत्‍पीड़न किया जा रहा है

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